भारत की बेटियां हर क्षेत्र में अपना मुकाम बना रही हैं. वह घर चलाने से लेकर देश चलाने तक, पहाड़ों पर चढ़ने से लेकर हवा में फाइटर प्लेन उड़ाने तक में भागीदार बन रही हैं. ये तो बात रही आज की मॉडर्न महिलाओं की लेकिन अब की महिलाओं को आगे बढ़ने, देश और समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा देने में इतिहास की कुछ महिलाओं का भी अहम रोल है. आज बच्चा-बच्चा कल्पना चावला का नाम जानता है. वह अंतरिक्ष पर उड़ान भरने वाली पहली भारतीय मूल की महिला थीं.
भारत का नाम रोशन करने वाली कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 में हरियाणा के करनाल में हुआ था. कल्पना चावला की शुरुआती शिक्षा करनाल में ही हुई. उनका पसंदीदा विषय हमेशा से ही विज्ञान था. कल्पना बचपन से ही फ्लाइट इंजीनियर बनने का सपना देखती थीं. उन्होंने अपने सपने को पूरा करने लिए पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज के एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया. पढ़ाई पूरी की तो उन्हें नौकरी के ऑफर भी मिलने लगे. लेकिन तब तक कल्पना अंतरिक्ष पर जाने के सपने देखने लगी थीं.
वह मात्र 20 साल की उम्र में आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गईं. यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से उन्होंने दो सालों में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की और अपने सपने के एक कदम और करीब आ गईं. इसके बाद साल 1986 में कल्पना ने दूसरी मास्टर्स डिग्री हासिल की और 1988 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की. अब उनके पास कमर्शियल पायलट का लाइसेंस भी था. कल्पना सर्टिफाइड फ्लाइट इंस्ट्रक्टर थीं. वहीं, कल्पना ने फ्रांस के जान पियरे से शादी की, जो एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे.
कल्पना ने साल 1993 में नासा में पहली बार अप्लाई किया, लेकिन तब उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया था. हालांकि कल्पना ने हार नहीं मानी. बाद में 1995 में नासा ने कल्पना चावला का चयन अंतरिक्ष यात्री के तौर पर किया. अब कल्पना चावला का सपना पूरा होने वाला था. साल 1998 में कल्पना को पहली उड़ान के लिए चुना गया. कल्पना ने अंतरिक्ष की पहली यात्रा के दौरान 372 घंटे बिताए. इस घटना के बाद उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया और वह अंतरिक्ष पर जाने वाली भारत की पहली महिला बन गईं.
साल 2000 में कल्पना का चयन दूसरी बार स्पेस यात्रा के लिए हुआ. हालांकि यह मिशन तीन साल लेट हुआ और 2003 में लांच किया गया. 16 जनवरी 2003 को कोलंबिया फ्लाइट STS 107 से दूसरे मिशन की शुरुआत हुई. लेकिन 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया अंतरिक्ष यान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूट गया. इस मिशन में 7 लोग शामिल थे.
फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ ही यान में सवार सभी अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई थी. इनमें से एक कल्पना चावला भी थीं. बेशक कल्पना की उड़ान रुक गई हो लेकिन वह दुनिया के लिए एक मिसाल बन गईं.
ये अंतरिक्ष यात्री तो सितारों की दुनिया में विलीन हो गए लेकिन इनके अनुसंधानों का लाभ पूरे विश्व को मिल रहा है. इस तरह कल्पना चावला के यह शब्द सत्य हो गए, मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं, प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए ही मरूंगी
कल्पना चावला भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वह मरकर भी वह आज हजारों लड़कियों के लिए प्रेरणा का काम कर रही हैं. महिला सशक्तिकरण की राह में कल्पना चावला ने नई कहानी लिखी है. आशा है उनसे प्रेरित होकर कई लड़कियां अपने सपनों को नई उड़ान देंगी.
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