नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किये| इसके साथ ही वह दो बार यह सम्मान पाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए| उनसे पहले कुछ भारतीय प्रधानमंत्रियों ने अमेरिकी कांग्रेसियों को भाषण भी दिया है| वहीं, विश्व के नेताओं की बात करी जाए तो मोदी ऐसे तीसरे नेता बन जाएंगे, जिन्होंने दो बार अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया है| आइये जानते हैं मोदी के अलावा और कौन-कौन से प्रधानमंत्री हैं जो अमेरिकी कांग्रेस को सम्बोधित कर चुके हैं –
नरेंद्र मोदी :
इस संबोधन के साथ ही नरेंद्र मोदी पहले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री बन गए, जिसे दूसरी बार यह गौरव हासिल हुआ| प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में अपने संबोधन के दौरान जलवायु परिवर्तन से लेकर, आतंकवाद, रक्षा और सुरक्षा सहयोग से लेकर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार और आर्थिक संबंधों तक के मुद्दों पर बात की थी| मोदी ने कहा था कि ‘पंद्रह साल से भी अधिक समय पहले, भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने यहां खड़े होकर अतीत की ‘संकोच की छाया’ से बाहर निकलने का आह्वान किया था. तब से हमारी दोस्ती के पन्ने एक उल्लेखनीय कहानी बताते हैं| चुनावों और प्रशासनों के बदलाव के चक्र के माध्यम से हमारी व्यस्तताओं की तीव्रता केवल बढ़ी है| इस रोमांचक यात्रा में, अमेरिकी कांग्रेस ने दिशासूचक के रूप में काम किया है|
दरअसल मोदी भारत और अमेरिका के बीच मजबूत साझेदारी को लेकर बात कर रहे थे| दूसरी बार अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने के साथ ही पीएम मोदी का नाम उन दो बार ये गौरव हासिल करने वालों की श्रेणी में आ गया |
मोदी की स्पीच का विरोध कर रहे ये अमेरिकी सांसद :
एक तरफ जहां पीएम मोदी की स्पीच को लेकर अमेरिका में खासा उत्साह है | वहीं वहां के कुछ नेता इसका विरोध भी कर रहे हैं | अमेरिकी सांसद रशीदा तलीब, इल्हान उमर, अलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़ और जेमी रस्किन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संयुक्त कांग्रेस संबोधन में शामिल नहीं हुए , उन्होंने आरोप लगाया कि ‘भारत में मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यकों का दमन किया है |
नेहरू ने 1949 में किया था संबोधित :
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1949 में अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया था | उन्होंने राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन की उपस्थिति में 15 मिनट स्पीच दी थी | संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच समानताओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा था, ‘मैं अमेरिका के दिमाग और दिल की खोज की यात्रा पर और हमारे अपने दिमाग और दिल को आपके सामने रखने के लिए यहां आया हूं. इस तरह से हम उस समझ और सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं, जिसका, मुझे यकीन है | दोनों देश ईमानदारी से ऐसा रखने , रहने , करने की इच्छा रखते हैं | नेहरू ने कहा था हम महसूस करते हैं कि स्व-सहायता किसी राष्ट्र के लिए सफलता की पहली शर्त है. हमारा प्राथमिक प्रयास होना चाहिए की हमें अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए किसी से भी सहायता नहीं मगनी चाहिए. हालांकि हमारी आर्थिक क्षमता बहुत अच्छी है, लेकिन इस धन में इसके रूपांतरण के लिए बहुत अधिक यांत्रिक और तकनीकी सहायता की आवश्यकता होगी |
राजीव गांधी :
राजीव गांधी ने 13 जून 1985 को अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित किया था | राजीव गांधी ने कहा था ‘मुझे ऐसे समय में भारत का प्रधानमंत्री चुना गया है जब हमारा देश विकास की नई लहर के लिए तैयार है’ | पिछले 30 वर्षों में हमारे नेताओं ने मजबूत नींव स्थापित की है, जिस पर अब हमें निर्माण करना है | राजीव गांधी ने कहा था कि ‘मैं जवान हूं और मेरा एक सपना है’ | मैं एक ऐसे भारत का सपना देखता हूं जो – मजबूत, आत्मनिर्भर और मानव जाति की सेवा में दुनिया के देशों की अग्रणी पंक्ति में हो | मैं समर्पण, कड़ी मेहनत और हमारे लोगों के सामूहिक दृढ़ संकल्प के माध्यम से उस सपने को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध हूं | हमें जो भी सहयोग मिलेगा हम उसका ह्रदय से स्वागत करेंगे|
पी.वी नरसिम्हा राव :
18 मई 1994 को पी.वी. नरसिम्हा राव ने अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया था | उन्होंने भारत-अमेरिका संबंधों पर जोर दिया और आपसी विकास के विचार पर ध्यान केंद्रित किया था | अपने भाषण में उन्होंने कहा, ‘चूंकि भारत अगली शताब्दी में वैश्विक समृद्धि और शांति में योगदान देने के लिए तैयार है’, हम अमेरिका और अमेरिकी लोगों के साथ अपनी साझेदारी जारी रखने के लिए तत्पर हैं और रहेंगे | राव ने कहा था कि ‘अमेरिका और भारत ने पूरे इतिहास में एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखा है’ | दूरियां कोई मायने नहीं रखतीं, यदि हम आज की चुनौतियों का जवाब देने की उम्मीद करते हैं तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संयुक्त राष्ट्र को मजबूत करने और अधिक संसाधन प्रदान करने की आवश्यकता है |
अटल बिहारी वाजपेयी :
14 सितंबर 2000 को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से भारत के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अमेरिकी कांग्रेस में भाषण दिया था | उन्होंने कहा था ‘यदि हम चाहते हैं… एक लोकतांत्रिक, समृद्ध, सहिष्णु, बहुलवादी, स्थिर एशिया… जहां हमारे महत्वपूर्ण हित सुरक्षित हों, तो हमारे लिए पुरानी धारणाओं की फिर से जांच करने की आवश्यक है | और आने वाले वर्षों में एक मजबूत, लोकतांत्रिक और आर्थिक रूप से समृद्ध भारत, एशिया के सभी प्रमुख सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्रों के चौराहे पर खड़ा रहेगा | वाजपेयी जी ने अपनी स्पीच में कहा था कि ‘सुरक्षा मुद्दों ने हमारे संबंधों पर छाया डाली है | हमारे बीच बहुत कुछ समान है और हितों में कोई टकराव नहीं है| भारत आपकी चिंताओं को समझता है , हम आपके अप्रसार प्रयासों को उजागर नहीं करना चाहते | हम चाहते हैं कि आप हमारी सुरक्षा चिंताओं को समझें | और आइए हम अपने और हमारे संयुक्त दृष्टिकोण के बीच मौजूद झिझक की छाया को दूर करें.’ वाजपेयी का ये बयान उस परिपेक्ष्य में था क्योंकि वाजपेयी सरकार ने दो साल पहले ही परमाणु परीक्षण किया था, जिस पर कई वैश्विक प्रतिबंध भी लगाए गए थे |
मनमोहन सिंह :
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने वाले भारत के 5वें प्रधानमंत्री थे | मनमोहन सिंह ने कहा था कि ‘राष्ट्रपति बुश और मैं (नागरिक परमाणु ऊर्जा) सहयोग को सक्षम करने के तरीकों और साधनों को खोजने में एक समझ तक पहुंचे | हमने हर नियम और सिद्धांत का ईमानदारी से पालन किया है | भले ही हमने अपने पड़ोस में अनियंत्रित परमाणु प्रसार देखा हो | हम संवेदनशील प्रौद्योगिकियों के प्रसार का स्रोत कभी नहीं रहे हैं और न ही कभी होंगे | मनमोहन सिंह ने कहा था कि ‘संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत को सभी प्रकार के आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सभी संभावित मंचों पर मिलकर काम करना चाहिए’, हम इस क्षेत्र में चयनात्मक नहीं हो सकते | हमें आतंकवाद से लड़ना चाहिए, चाहे वह कहीं पर भी मौजूद हो, क्योंकि आतंकवाद कहीं भी हो, हर जगह लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा करता रहेगा |
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