बहुत पुरानी बात है एकबार एक राजा पूजा सुनता है | जब पंडित जी जाने लगते हैं तो राजा पूछता है – पंडित जी मेरे मन में कुछ विचार आये हैं जाते -जाते आप उसका निवारण कर दीजिये | पंडित ने कहा ठीक है पूछिए | राजा ने पूछा – ये जो ईश्वर है ये ईश्वर कैसे दिखता है ? ईश्वर कहाँ तक देखता है ? ये जो ईश्वर है ये कर क्या सकता है ?
पंडित जी को बहुत हैरानी हुई फिर भी उन्होंने समय लिया की इसका उत्तर मैं एक महीने बाद बताऊंगा | लेकिन पंडित जी यही सोचकर परेशान हो रहे थे की एक महीने के बाद मैं राजा को क्या जबाब दूंगा ?
दो – चार दिन के बाद पंडित जी का बेटा घर आता है जो अभी गुरुकुल में पढ़ रहा होता है | लड़का अपने पिता को परेशानी में देखकर उसका कारण पूछता है तो पंडित जी सारी दास्तान बताते हैं | लड़का बोला बस इतनी सी बात है, आप परेशान मत होइए एक महीने बाद आप मुझे राजदरबार में ले चलिएगा मैं इसका उत्तर दे दूंगा |
पंडित बहुत खुश हुआ बोला राजदरबार में क्या बताओगे आखिर मैं भी तो जानू | लड़के ने कहा नहीं पिता जी इसका उत्तर आप भी वहीँ सुन लेना |
आखिर एक महीने पुरे हुए | अपने कहने के अनुसार पंडित जी राजा के समक्ष उपस्थित होते है और साथ में अपने बेटे को लेकर जाते हैं | पंडित जी ने राजा से कहा महराज आपके प्रश्नो का उत्तर मेरा बेटा देगा | सारे प्रश्न आप इसी के पूछ लीजिये |
ईश्वर कैसे दिखता है ?
राजा ने अपना पहला प्रश्न पूछा – ईश्वर कैसे दिखता है ?
पंडित के बेटे ने कहा – क्या महराज आप भी गजब करते हैं ? आपके यहाँ कोई अतिथि आया है और आपने तो न जल, न जलपान सीधे प्रश्न पर आ गए |
राजा को शर्म आ गई उन्होंने तुरंत जलपान की व्यवस्था कराई | गिलास में दूध मंगाया | पंडित का लड़का उस दूध में उंगली डालकर कुछ देखने लगा, दूध गिराकर देखने लगा | बार – बार ऐसा करने पर राजा को हैरानी हुई और पूछा – आखिर इसमें क्या ढूढ़ रहे हो ?
लडके ने कहा – साहब, मैं इसमें मक्खन देख रहा हूँ |
राजा ने कहा – दूध में भला मक्खन कहां से हो सकता है ? दूध को पहले दही बनाया जाता है फिर मथा जाता है तब जाकर कहीं मक्खन दिखता है और मक्खन मिलता है |
ठीक पंडित के बेटे ने जबाब दिया – ठीक यही बात है ईश्वर ऐसे थोड़ी न दिखाई देगा ? वह हर आत्मा के अंदर विद्यमान है, हर जीव में है लेकिन पहले आपको नियमो का पालन करना होगा, आपको ध्यान करना होगा, उन्हें प्रसन्न करना होगा तब जाकर कहीं आपको ईश्वर दिखाई देंगे |
ईश्वर कहाँ तक देखता है ?
राजा जबाब से बहुत खुश हुआ उसने अपना दूसरा प्रश्न पूछा – ईश्वर कहाँ तक देखता है ?
पंडित के बेटे ने जबाब देने के पहले मोमबत्ती मंगाई | उसने मोमबत्ती जलाई और राजा से पूछा – राजन, इस मोमबत्ती की रोशनी कहां तक जा रही है ?
राजा ने जबाब दिया – मोमबत्ती की रोशनी तो चारो तरफ जा रही है |
फिर पंडित के बेटे ने जबाब दिया – ठीक इसी प्रकार ईश्वर चारो तरफ देखता है | भले ही कोई यह सोचे की भगवन को क्या पता चलेगा ? लेकिन ईश्वर हमारे समस्त अच्छे व बुरे कर्मों का हिसाब रखता है वह सब कुछ देखता है |
ईश्वर करता क्या है ? ईश्वर क्या – क्या कर सकता है ?
उत्तर सुनकर अब राजा और भी प्रभावित हुआ और बड़ी ही शालीनता से अपना अंतिम प्रश्न पूछता है – की महात्मन मेरे अंतिम प्रश्न ‘ ईश्वर करता क्या है ?’ इसका उत्तर दे दीजिये |
पंडित के बेटे ने कहा इसका उत्तर तो मैं आपको दे दूंगा लेकिन पहले मुझे ये बताइये यह प्रश्न आप गुरु बनकर पूछ रहे हैं या शिष्य बनकर जानना चाहते हैं |
राजा ने कहा – जी, अब तो बस शिष्य बनकर जानने की इक्छा है |
पंडित के बेटे ने तुरंत कहा – क्या महराज गुरु नीचे खड़ा है और शिष्य सिंघासन पर विराजमान रहे ऐसे होता है भला |
राजा को फिर से लज्जा आ गई वह तुरंत अपने सिंघासन से नीचे आ जाते हैं | पंडित का लड़का सिंघासन पर जाकर बैठ जाता है | और अब राजा फिर से अपने प्रश्न को दोहराते हैं |
पंडित का बेटा जबाब देता है – अभी भी आपको नहीं समझ आया | ये ईश्वर का ही तो चक्र है | क्षण भर में वह राजा को रंक और मुझ जैसे गरीब को भी सिंघासन पर बैठा सकता है | राजा समस्त उत्तर सुनकर बहुत प्रसन्न होता है |
इस कहानी का सार यही है की परमात्मा हर जगह विद्यमान है | उसके पास हर किसी के कर्मों का कच्चा चिट्ठा है | और भरोसा रखिये वह किसी रंक को भी राजा और राजा को रंक बना सकता है बस आपका उसपर अपना विश्वास सुदृढ़ होना चाहिए |
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