दो बौद्ध भिक्षु एक मठ में रहते थे | उसमें से एक बुजुर्ग थे और एक नवयुवक थे जो अभी-अभी बौद्ध भिक्षु बने थे | अभी साधक बने थे , सन्यास के रास्ते पर चले थे |
एक दिन उन्हें मठ छोड़कर किसी दूसरे नगर में काम से जाना था | दिन में वो भोजन कर के अपने गुरु से अनुमति लेकर निकले | जंगल का रास्ता था चलते चलते साम होने को आ गई , सिर्फ एक नदी पार करनी बाकी थी | रास्ता तय हो चूका था लेकिन समस्या इस बात की थी की नदी के उस पार जो नगर था उसका दरवाजा सूर्यास्त के बाद बंद हो जाता था |
नदी के इस पार तो थे ये , फिर इन्होने फटा फट एक नाविक को ढूढ़ा जो इन्हे नदी पार करा सकता था | इन्होने उस नाविक से बोला की भाई साहब नदी पार करा दीजिये और कहा की जल्दी पार कराइयेगा | हलाकि माझी जो था वो बहुत सुकून में था वह मुस्कुराते हुए बोला की जल्दी में कुछ नहीं होता है जीवन में सब आराम से होता है , चिंता क्यू करते हो , हम पहुंच जायेगे |
फिर मुस्कुराते हुए नाविक ने कहा कि मैं और मेरी नाव आज धन्य हो गई की आप जैसे संत मेरी नौका में पधारे और मुझे ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ की मैं आपको नदी पार कराऊँ |फिर उन दोनों बौद्ध भिक्षु को नाव में बैठाया और नदी पार कराने लगा |
अब दोनों बौद्ध भिक्षु बार बार ये दबाव बनाने लगे की और थोड़ा जल्दी चलाइये लेकिन वो नाविक उतनी ही शालीनता के साथ मुस्कुराते हुए आगे को चल रहा था और बोल रहा था चिंता मत करो पहुँच जायेगे | जैसे हो सब नदी के उस पार पहुंचने वाले थे बुजुर्ग भिक्षु ने नाविक से पूछ लिया की – क्या लगता है वो जो नगर का दरवाजा दिख रहा है , सूर्यास्त होने से पहले हम वहां पहुंच जायेगे ?
क्योकि अगर हम सूर्यास्त के पहले वहां तक नहीं पहुंचे तो दरवाजा बंद हो जायेगा हम नगर में प्रवेश नहीं पाएंगे |
नाविक ने कहा अगर आप तेज चलेंगे तो नहीं पहुंच पाएंगे और धीरे चलेंगे तो पहुंच जायेगे |
अब दोनों बौद्ध भिक्षु मन ही मन हसने लगे की , क्या कह रहा है ? अगर तेज चलेंगे तो नहीं पहुंच पाओगे और धीरे चलेंगे तो पहुंच पाओगे | अब धीरे चलने से कोई भला पंहुचा है !
चलो अब नदी के उस पार पहुंचे , नाव से उतरकर तेज तेज भागकर चलने लगे |उबड़ खाबड़ रस्ते थे और बड़ी बड़ी झाडिया थी जिसमे जो बड़े बौद्ध भिक्षु थे वो उसमे उलझ कर गिर गए , मुँह से खून निकलने लगा , जोर से चिल्लाये तो छोटे वाले ने पलट कर देखा | देखा तो गुरु जी गिरे पड़े है और बहुत खून निकल रहा है |अब इनके दिमाग से वो विचार निकल गया की मुझे नगर में प्रवेश पाना है उसने कहा पहले इनका उपचार करवाना है आवाज दिया नाविक को की आओ मेरी मदद करो |
माझी आया और कहने लगा की मैं तो बोला था की आप तेज चलेंगे तो नहीं पहुंच पाएंगे और धीरे चलेंगे तो पहुंच जायेगे लेकिन आपने मेरी नहीं सुनी | जूनियर भिक्षु ने कहा पहले इनको लेकर चलो इनका उपचार करवाओ | कहां है आपकी झोपड़ी ? कहा रहते है आप ?
नाविक अपनी झोपड़ी में ले गया आदर सत्कार किया उपचार कराया भोजन कराया उसके बाद कहने लगा – क्षमा करे वैसे तो आप ज्ञानी है ज्ञान की बात करते है लेकिन मैं भी आपको ज्ञान की बात ही बता रहा था रास्ता उबड़ खाबड़ है रास्ते में पत्थर है झाडिया है आप तेज चलेंगे तो नहीं पहुंच पाएंगे मैंने कहां था ना धीरे चलेंगे आराम से चलेंगे तो पहुंच जायेगे अभी आप नगर में प्रवेश पा लेते मेरी कुटिया की बजाय आप नगर में आराम कर रहे होते |
अगर हकीकत में देखा जाये तो भिक्षुओं की कहानी के साथ साथ ये हमारी – आपकी भी कहानी है आजकी इस भागती दौड़ती जिंदगी में सब कुछ हमें जल्दी चाहिए , फटा फट पहुंचना है हम भूल जाते है की जिंदगी में संतुलन बना कर रखना चाहिए अगर हम धीरे – धीरे चलेंगे तो रास्ते का भी आनंद लेते रहेंगे और मंजिल को भी तय कर लेंगे | लेकिन हम इतनी तेजी दिखते है की ना तो हम जिंदगी के मजे ले पाते है और ना ही मंजिल तक पहुँच पाते है इसलिए जल्दीबाजी और हड़बड़ाहट से हटकर जिंदगी में संतुलन बनाते हुए जिंदगी का आनंद लेते हुए जीवन को जीना सुरु कीजिये |
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