कोलकाता का प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज, जहां से पढ़कर जाने कितने प्रसिद्ध कलाकार, लेखक, वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक निकले और दुनिया भर में देश का नाम रोशन किया. इन्हीं में शामिल है एक ऐसा नाम, जिसने अपनी देशभक्ती, सादगी, सेवा, और त्याग से लोगों के दिलों में जगह बनाई और देश के पहले राष्ट्रपति बने. जी हां हम बात कर रहे हैं बिहार के गांधी कहे जाने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद की…
कुछ शख्सियतें ऐसी होती हैं, जो मिसाल बन जाती हैं, आने वाली पीढ़ियां उनसे सीखती हैं. फिर वे कहानियां बन जाते हैं और जिंदगी का सलीका सीखाते रहते हैं.
कमाल के इंसान, महान स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त राजनीतिज्ञ, महात्मा गांधी की जीवन शैली से प्रभावित डॉ. राजेंद्र प्रसाद की राजनीतिक चेतना उनके शैक्षेणिक जीवन से ही उजागर थी. वे एक होनहार छात्र थे और एक बेहतरीन लेखक भी थे. इससे जुड़ा एक किस्सा बड़ा मशहूर है, जो आज भी गाहे-बगाहे सुनाया जाता है. डॉ राजेंद्र प्रसाद कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में छात्र थे. उनके जवाब पढ़कर परीक्षक इतना प्रभावित हो गया कि उसने उनकी परीक्षा पत्रक में लिख दिया ‘THE EXAMINEE IS BETTER THAN EXAMINAR’ यानी “परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है”.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जीवन से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जिसे आप अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहेंगे. ऐसा ही एक किस्सा उनके राष्ट्रपति बनने के बाद का है. जो देश के सर्वोच्च पद (राष्ट्रपति पद) पर आसीन होने के बावजूद डॉ. राजेंद्र प्रसाद बड़ी ही सादगी से रहा करते थे. अपने राष्ट्रपति कार्यकाल में उनकी सेवा के लिए तमाम नौकर नियुक्त किये गये थे, लेकिन उन्हें यह सब पसंद नहीं था. इसलिए इसके उलट वे बस जितने की जरूरत है, उतना ही चाहते थे. ऐसे में उन्होंने सबको हटाकर केवल एक पर्सनल कर्मचारी अपने पास रखा. इससे उस दौर के नेता काफी हैरान भी हुए, लेकिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बिना किसी की परवाह किए अपना राष्ट्रपति कार्यकाल बड़े ही आराम से पूरा किया.
न सिर्फ इतना बल्कि उन्होंने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान अपना मासिक वेतन भी कम करवा दिया था. उस दौर में राष्ट्रपति का मासिक वेतन 10 हजार रुपये तक हुआ करता था. साथ ही दो हजार रुपये का भत्ता अलग से मिला करता था, लेकिन अपने सादा जीवन-उच्च विचार के चलते उन्होंने सर्व प्रथम अपना भत्ता बंद करवा दिया. इसके बाद वेतन में भी कटौती करते हुए पहले 6 हजार, फिर 5 हजार और बाद में ढाई हजार रुपये करवा दिया था. उनका मानना था कि वह एक निर्धन देश के राष्ट्रपति हैं. इसलिए किसी भी तरह की फिजूलखर्ची सही नहीं है…
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल साल 1950 से 1962 तक रहा, जिसके बाद साल 1962 में अवकाश प्राप्त करने के पश्चात उन्हें भारत रत्न की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया गया.
तो यह थे, भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जीवन से जुड़े कुछ अनसुने किस्से, जो यह सीख देते हैं कि चाहे व्यक्ति कितना भी ऊंचाइयों को छू लें, लेकिन अपने सादगी भरे जीवन से वह लोगों का दिल छू सकता है..
More Stories
शब्दों की ताकत
देश के ये प्रधानमंत्री कर चुके अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित
पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह हुए BJP में शामिल, पिछले साल छोड़ा था नीतीश का साथ