रंग बिरंगे मोटे अनाज, ये है गरीबों का अनाज
कभी पूरी दुनिया के खानपान में मुख्य आहार के तौर पर शामिल मोटे अनाज को फिर से उसका रुतबा हासिल कराने के लिए भारत के नेतृत्व में जोरशोर से प्रयास शुरू कर दिए गए हैं…..जी हां इसे गरीबों का अनाज कहते थे लेकिन करोना काल ने इस मिथ को तोड़ दिया, अब ये सुपर फ़ूड हो गया है और देश विदेश में इसको प्रोत्साहित करने के लिये कई उपाय किये जा रहे हैं…….ये रंग बिरंगे मोटे अनाज, दांत मजबूत करने के साथ-साथ ऊर्जा, खनिज के भरपूर भंडार हैं जिससे पाचन, अनिद्रा, हृदय इत्यादि की बीमारियां कंट्रोल में रहती हैं..…..
वहीं, मोटे अनाज को मिलेट कहते हैं…… यह 2 प्रकार का होता है…. एक मोटा दाना और दूसरा छोटा दाना….. मिलेट में ज्वाार, बाजरा, रागी, बैरी, कुटकी, कोदो, चेना, सामा और जौ आदि आते हैं…..भारत में 60 के दशक में मिलेट का उत्पादन कम हुआ और उसकी जगह भारतीयों की थाली में गेहूं और चावल सजा दिए गए…..वहीं, 1960 के दशक में हरित क्रांति के नाम पर भारत के परंपरागत भोजन को हटा दिया गया…..गेहूं को बढ़ावा दिया गया जो एक प्रकार का मैदा ही है….मोटा अनाज खाना बंद कर देने से कई तरह के रोग के साथ ही देश में कुपोषण भी बढ़ा है…. मोटे अनाज की फसल को उगाने के फायदा यह है कि इसे ज्यादा पानी की जरूत नहीं होती है……यह पानी की कमी होने पर खराब भी नहीं होती है और ज्यादा बारिश होने पर भी इसे ज्यादा नुकसान नहीं होता है। मोटा अनाज की फसल खराब होने की स्थिति में भी पशुओं के चारे के काम आ सकती हैं। बाजरा और ज्वाुर जैसी फसलें बहुत कम मेहनत में तैयार हो जाती है।
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