अगर आप भी दूसरों की ही बुराइयों को देखते हैं या दूसरों की बुराई दिखती है तो यह कहानी जरूर सुन लेना | एक बार की बात है एक शिष्य अपनी शिक्षा को खत्म करके घर जा रहा था | जाते समय गुरु जी ने उसे एक दर्पण दिया और कहा कि यह एक ऐसा दर्पण है जो लोगों की बुराइयों को बता सकते हो |
लड़का बहुत खुश हुआ और दर्पण ले लिया | उसने सोचा इस दर्पण का परिणाम पहले गुरुजी पर ही क्यों ना देखा जाए | लड़के ने ज्यों ही देखा उसने देखा कि गुरुजी के अंदर अभी भी कुछ अहंकार और क्रोध है |
उसे आश्चर्य हुआ कि गुरुजी के अंदर ऐसा अवगुण | हालांकि गुरु थे इसलिए उसने कुछ नहीं पाया और दर्पण लेकर आगे बढ़ गया |
रास्ते में उससे उसका पुराना दोस्त मिलता है | लड़के ने कहा देखो गुरु जी ने मुझे यह दर्पण दिया है दोस्त ने जैसे ही दर्पण में देखा लड़के ने तुरंत पढ़ लिया कि उसके मन में काम, क्रोध, लोभ भरा पड़ा है | लड़का थोड़ा सा अचंभित हुआ कि जिसको मैं अपना सबसे अच्छा दोस्त मानता था उसी के मन में इतनी गंदगी भरी है |
हालांकि लड़के ने सोचा दोस्त ही तो है | सोचा चलो कोई नहीं दुनिया के में दो चार परसेंट ऐसे लोग होंगे फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा | लड़का फिर अपने घर की ओर चल दिया |
रास्ते में एक बनिए की दुकान दिखाई दी | लड़के के घर पर इसी बनिए के यहां से सारा सामान जाता था | लड़के ने सोचा क्यों ना इसका भी मन पढ़ा जाए | लड़के ने बनिए से कहा देखो दादा गुरु जी ने मुझे बहुत अच्छा दर्पण दिया है |
यह कहकर लड़का बनिए की तरफ दर्पण करता है | जैसे ही बनिया दर्पण में देखा की शिष्य ने सारे गुण अवगुण पढ़ लिया | बनिए के मन में और भी अवगुण छल, कपट, बेईमानी भरी थी | लड़का सोच में पड़ गया कि हम सब इसे खामखा ईमानदार समझ रहे थे | यह तो बहुत ही बेईमान निकला |
अब लड़के का मन दुनिया से थोड़ा उचट गया | सोचने लगा लोगों में इतनी बुराइयां भरी हैं | फिर उसने सोचा चलो यह सब तो अपने हैं ही नहीं |इनके गुण अवगुण से हमको क्या लेना देना | मेरे घर वाले मेरे मां-बाप तो सही है, ठीक है |
यह सोचकर वह घर में अपने पिताजी के पास जाता है | मन में शंका बस वह उन्हें दर्पण दिखता है और उनका अवगुण देखकर एकदम उदास हो जाता है |
फिर वह मां के पास जाता है और सोचता है की मां तो अपने बच्चों से कोई कपट नहीं रखती | यह सोचकर मां को दर्पण दिखता है | माँ के अवगुण देखकर अबकी बार वह एकदम टूट जाता है |
वह तुरंत दर्पण लेकर गुरु जी के पास वापस जाता है | बोलता है गुरुजी आपने यह कैसा दर्पण दे दिया है इसमें तो सबके अंदर बुराइयां ही दिखती हैं | अबकी बार वह इतना उदास हो चुका था कि वह गुरु जी के बारे में भी सब बक दिया |
उसने बोल दिया कि गुरुजी आपके अंदर भी दोष है | यह सुनकर गुरुजी हंस पड़े और बोले ठीक है हम सबके अंदर, पूरी दुनिया में हर इंसान के अंदर दोष है | लेकिन एक बार तुम अपनी भी शक्ल तो उसमें देख लो |
लड़के ने जैसे ही अपना चेहरा दर्पण में दिखा वह एकदम से आश्चर्यचकित हो गया | उसके अंदर इन सबसे ज्यादा बुराइयां दिखाई दी |
तब गुरु जी ने बताया कि बेटा मैंने तुमको यह दर्पण इसलिए दिया था कि पहले तुम अपना चेहरा देखकर अपने अंदर के अवगुण को दूर करो तब कहीं दूसरों के अवगुण को देखो दूसरों की बुराई को देखो | और उनके अवगुण को दूर कर सको | लेकिन यह तो तुम अपने दोष को, अपने अवगुण को देखने से पहले ही लोगों के अवगुण को देखने लगे |
अबकी बार शिष्य सब कुछ समझ चुका था | उसे समझ आ गया था की दूसरों की बुराई देखने से पहले, दूसरों की कमियों को देखने से पहले अपनी कमियों को भी एकबार जरूर देखना चाहिए | वह गुरु जी के पैर छुए और निकल गया |
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