यह एक Short Motivational Story है जो एक संत की है | संत प्रवचन देने के लिए एक नगर से दूसरे नगर जाया करते थे | उनकी खुद की कोई कुटिया नहीं थी |
वह सदैव एक जगह से दूसरी जगह जाया करते , प्रवचन करते और जो भी भिक्षा मिलती उसी से पेट भरते | जीवन में और ज्यादा की कोई इक्षा नहीं थी |
एकबार की बात है उनके पास एक आदमी आता है और बोलता है की आप प्रवचन करने जगह – जगह जाते हैं | इस नगर के राजा बहुत ही दानवीर हैं | क्यों न आप उनसे कुछ जमीन ले लेते और वहीँ अपनी कुटिया बना लेते और एकजगह बैठ कर प्रवचन करते |
दान के लिए संत राजदरबार में गए
संत को यह बात अच्छी लगती है | वह दूसरे दिन सुबह – सुबह राजा के दरबार में पहुंच जाते हैं | वह जाते तो सुबह हैं लेकिन उनसे पहले कई सारे लोग दान लेने के लिए पहुंचे रहते हैं |
सभी को दान देने के बाद जब संत का नंबर आता है तो राजा ने इनसे भी पूछा की बाबा आपको क्या चाहिए ?
संत ने उत्तर दिया – मुझे अपनी कुटिया बनाने के लिए और प्रवचन करने के लिए आपके राज्य में कुछ जमीन चाहिए |
राजा ने कहा – आप ने इतने पुण्य का काम हमारे राज्य में चुने हैं ये तो हमारे लिए बहुत गर्व की बात है | बताइये, आपको कितनी जगह चाहिए ?
राजा का यह प्रश्न अब संत को भ्रम में डाल रहा था | वह सोच में पड गए की एक बीघा जमीन ठीक रहेगा | फिर विचार आया की दो बीघा ले लेते हैं जिसमे कुछ पेड़ भी लगा लेंगे |
बस यही सब सोच रहे थे की राजा ने फिर पूछ लिया की महात्मन आपको कितनी जमीन चाहिए ?
राजा ने संत को क्या दान में दिया?
संत अब भी कुछ नहीं बोल पा रहे थे | फिर राजा ने कहा – वह जो मैदान है उसके एक सिरे से चलकर साम तक आप जितने भी दूर चलेंगे वह सारी जमीन आपकी हो जाएगी |
राजा की यह बात सुनकर बिना देर किये संत तुरंत रास्ता नापने के लिए निकल गए | इधर राजा ने अपने कुछ सिपाहियों को भी लगा दिया की रास्ते में जब बाबा को भूख – प्यास वगैरह लगेगी तब खाना और पानी दे देना |
अब संत चले जा रहे हैं | थोड़ी दूर चलने के बाद सिपाहियों ने पूछा बाबा थोड़ा आराम कर लीजिये पानी पी लीजिए , लेकिन उन्होंने कुछ भी खाने पिने से मना कर दिया |
बाबा दौड़ते चले जा रहे थे की रास्ते में उन्हें झील दिखी | उन्होंने सोचा आश्रम में तो झील जरुरी है | उन्होंने दौड़ते हुए झील के भी चक्कर लगाए | उनको राजा की बात भी याद आयी की साम के पहले पहुंचना भी है इसलिए वह दौड़ लगाने लगे |
साम होने से पहले वह अपना रास्ता कबर कर तो लिए थे लेकिन पहुंचते – पहुंचते वह गिर पड़े | और वह ऐसे गिरे की फिर कभी उठ नहीं सके | महात्मा जी मर चुके थे |
कहानी से सीख
यह कहानी उन संत के साथ साथ हम सब की भी है की हम सब और चाहिए और चाहिए की लालसा के पीछे भाग रहे हैं | लेकिन हम यह भूल चुके हैं की असल में जिंदगी दौड़ने भागने का नहीं असल जिंदगी तो जीने का नाम है | इसी तरह की और Short Motivational Story in Hindi Youtube पर देखें | धन्यवाद |
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